Sunday, November 9, 2008

मां, क्या तुमको कभी मेरी याद आती है। अगर हाँ, तो फ़िर तुम दिखाई क्यों नहीं देती। तुमने कभी सोचा है, कि तुम्हारे बगैर मैं कैसा हूं ? किस तरह मेरी जिंदगी मे एक अधूरापन है जो मुझे सालता रहता हैहमेशा सोचता रहता हूं कि कभी तुम मिलो तो ढेर सारी शिकायतें, पर तुम मुझे मिलोगी भी तो कहाँ? मै हूं कि अपनी

Saturday, November 8, 2008

शाम और तुम

पता नही क्यों मुझे लगता है की इस शाम के साथ मेरा बहुत गहरा नाता है। जब भी ढलती हुई शाम देखता हूँ, एक अजीब सी छुवन से भर जाता हूँ। ऐसा लगता है जैसे कोई मुझे अपनी ओर खींचना चाहता है। आज तक जो भी दिल से निकला इसी शाम ने प्रेरित किया। शाम के कई हंसीन पल मेरी यादों की किताब बन गए है। शाम के वक्त जब अकेला होता हूं, तो मन रुआसा हो जाता है। अपने आपको समजाने लगता हूं।