Tuesday, June 30, 2009

तेरा जाना ि‍दल के अरमानों का लुट जाना

कभी कभी सोचता हूं ि‍क तुम्‍हारे ि‍बना ि‍जन्‍दगी ि‍कतनी अधूरी हो जाती है। ना कही हलचल होती है और ना कोई उमंग शेष रहती है। इस घ्‍ार में कुछ भी ऐसा नहीं है जो तुम्‍हारी यादों से जुडा हुआ नहीं हो, रसोई ि‍बस्‍तर, टेबल, कुर्सी या कोई जगह। हर जगह पर मानों तुम्‍हारा स्‍पर्श हो। ये सारे तब तक ही अपने लगते है जब तक तुम घर में होती हो। तुम्‍हारे चले जाने के बाद मैं तुम्‍हारी जमाई हुई ि‍कसी ि‍कताब को नहीं छुता, क्‍यों ि‍क जो मजा तुम्‍हारे होने पर जमी ि‍कताबे इधर उधर रख छोडने में आता है वो तुम्‍हारे जाने के बाद नहीं आता।

जब रसोई में तुम मेरे ि‍लए पूरे मन से कुछ पकाया करती हो और पीछे से आकर मैं तुम्‍हे अपनी बांहों में भर लेता हूं, और तुम कहती हो छोडो ना देखो वो जल चले जाओ नहीं तो मैं तुम्‍हे पानी से गीला कर दूंगी। ि‍फर चुम्‍बन की वो झडी लग जाती है। तुम्‍हारा वो कोमल स्‍पर्श हमेशा तुम्‍हारे प्‍यार की गहराइयों की याद ि‍दलाता है।

जब भी तुम कहीं जाती हो ि‍बस्‍तर की ि‍सलवटों को तुम्‍हारे जाने के बाद मैं ठीक वैसे ही रख छोडता हूं, क्‍यों ि‍क उसमें तुम्‍हारा ढेर सारा प्‍यार ि‍छपा होता है। मैं सोते समय तुम्‍हे अलग तकीया लेने की कहता हूं और तुम ये कहती हुई ि‍क मुझे तकीये की कहां जरूरत है मेरे सीने पर सर रखकर सो जाती हो। मेरे बालों को सहलाते हुए अपने सपनों की बातें करना। और धीरे धीरे नींद की आगोश में चले जाना।

जब तुम नहीं होती हो तो मुझे नींद कहां आती है। इधर उधर टहलते और टीवी चैनल बदलते रात गुजार लेता हूं। पल पल तुम्‍हारा फोन करना तुम्‍हारी बेकरारी बया करता है। देखो दूध पी लेना, खाना नहीं बने तो होटल पर खा लेना लेि‍कन भूखे मत रहना जैसी ढेर सारी बातें ि‍रश्‍तों के बंधन को और भी मजबूत कर देती है।

Saturday, June 27, 2009

एक हसीन यादों का कारवां
जो तुमने आंखों से आंखों के रास्‍ते
मेरे ि‍दल में उतारा था।
मायूसी और परेशानी के तंग रास्‍तों पर आज भी
मुझे सफर में अधूरा नहीं छोडता।

इस बादल की कहां ि‍बसात थी जो
मुझे भीगोकर चला जाए,
तुम्‍हारे पल्‍लू तले मैं आंखों में तैरते हर सपने को
सूखाता रहा।
और तुम सूखे सपनों पर कहीं चांद तारों की नक्‍काशी कर बैठती थी
तो कहीं भावनाओं से भरभराएं आसुंओं की बूंदे सजा देती थी।

उस फूल की पंखुि‍रयां आज भी
मेरी ि‍कताब के बीच दबकर भी आहत नहीं हुई है।
होती भी कैसे,
उसकी ि‍शराओं में तेरी मोहब्‍बत की महक जो अभी ि‍जंदा है।
ि‍जस भोलेपन और मासूि‍मयत से तुमने
मुझे अपना कहा था
वो शब्‍द आज भी ये हवाएं मुझे कभी कभी
याद ि‍दला जाती है।

तुमने ही तो कहा था
रास्‍ते कभी खत्‍म नहीं होते
जहां रास्‍ते बंद हो जाते है
वहां संघर्ष समझो।
रास्‍ते बनाने का संघर्ष।
अब जानता हूं ि‍क तुम नहीं हो,
लेि‍कन आज भी तुम्‍हारी ये बातें मुझे संघर्ष को प्रेि‍रत करती है।
ऐसे रास्‍ते बनाने के ि‍लए जहां मैं पहुंचता हूं तो तुम्‍हे
हंसती ि‍खल ि‍खलाती हुई मेरी सफलता पर खुश पाता हूं।

Friday, June 12, 2009

खोए हम बेजान नजर आते हैं


हर तरफ तेरे ि‍नशान नजर आते हैं
ये कैसी कशीश है ि‍क हम परेशान नजर आते हैं

सैकडों बार तुमने हमको अपने सीने से लगाया
और पूछा कीसी ने तो कह ि‍दया ि‍क हम अनजान नजर आते हैं

तुम मोहब्‍बत को महसूस करने से पहले ही उकता गई
तेरे प्‍यार की खुमारी में खोए हम बेजान नजर आते हैं

वक्‍त को बहुत कसकर पकडा है हमने अपनी मुट़ठी में
दूर तलक देखो तो श्‍मशान नजर आते हैं


तेरे ि‍बना क्‍या जीना और क्‍या मर जाना है
तेरी परछाई में हमको भगवान नजर आते हैं

Monday, June 1, 2009

तुम ममता हो

तुम सुबह से शाम तक
ि‍बना थकी ि‍बना हारे चलती रहती हो।

ि‍जम्‍मेदारी का बोझ उठाए सूखे होठों पर
तुम्‍हारी वो खूबसूरत हंसी
अथक प्रयासों से समंदर में गोते लगाकर लाए गए

मोती से कम नहीं होती।

मैं तुम्‍हें ि‍जन्‍दगी की भागदौड करते हुए
एकटक देखता रहता हूं।
तुम सारे कामों से थकी हुई आराम की अवस्‍था में आती हो
और मैं ि‍फर कोई न कोई काम तुम्‍हारे ि‍लए रख छोडता हूं।
तब मैं तुम्‍हारा पुजारी जाता हूं ि‍क तुम
माथे पर ि‍बना ि‍कसी तरह की ि‍शकन लाए
उस काम को करने के ि‍लए तत्‍पर हो जाती हो।

मेरा कोई काम तुम्‍हारे ि‍बना कहा संभव है
मैं हर दम कंगुरा ही बना और तुम
नींव बनकर मेरा सारा बोझ उठाती रही हो
तुम्‍हारी मेहनत का तुमको ि‍तल भर भी जस नहीं ि‍मला
ि‍फर भी तुम नाराज नहीं हुई
मेरी सफलता को हमेशा तुम अपनी सफलता मानती रही।

मेरी कल्‍पनाओं को अपने
सांचे में ढाला तुमने,
ि‍जन्‍दगी में कभी लडखडाया तो
ताकत बनकर संभाला तुमने।
तुम मेरी हर छोटी मुस्‍कान पर ि‍मटने को तत्‍पर रहती हो
तुम ममता हो जो मेरा हर दुख सहती हो।

ख्‍वाि‍हशें


तम्‍हारे स्‍वर में स्‍वर ि‍मालाना चाहता हूं

सोये हुए गीतों को ि‍फर से जगाना चाहता हूं


ख्‍वाि‍हशों और खुमारी को खोने नहीं ि‍दया मैंने

इसको तेरी पलकों पे सजाना चाहता हूं।


हर रात तेरी बांहों में ि‍समटा मैं सोचता हूं

ि‍रश्‍तों की हर रस्‍म को ि‍नभाना चाहता हूं।


एक दीया सा ि‍टम ि‍टमाता रहता है ि‍दल के भीतर

उसकी रोशनी में तुमको नहलाना चाहता हूं।


कहां संभाल पाओगी तुम अपने ि‍नशांत को

तुम्‍हारे प्‍यार में हर दम लडखडाना चाहता हूं।