Saturday, November 8, 2008

शाम और तुम

पता नही क्यों मुझे लगता है की इस शाम के साथ मेरा बहुत गहरा नाता है। जब भी ढलती हुई शाम देखता हूँ, एक अजीब सी छुवन से भर जाता हूँ। ऐसा लगता है जैसे कोई मुझे अपनी ओर खींचना चाहता है। आज तक जो भी दिल से निकला इसी शाम ने प्रेरित किया। शाम के कई हंसीन पल मेरी यादों की किताब बन गए है। शाम के वक्त जब अकेला होता हूं, तो मन रुआसा हो जाता है। अपने आपको समजाने लगता हूं।

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