Monday, June 1, 2009

तुम ममता हो

तुम सुबह से शाम तक
ि‍बना थकी ि‍बना हारे चलती रहती हो।

ि‍जम्‍मेदारी का बोझ उठाए सूखे होठों पर
तुम्‍हारी वो खूबसूरत हंसी
अथक प्रयासों से समंदर में गोते लगाकर लाए गए

मोती से कम नहीं होती।

मैं तुम्‍हें ि‍जन्‍दगी की भागदौड करते हुए
एकटक देखता रहता हूं।
तुम सारे कामों से थकी हुई आराम की अवस्‍था में आती हो
और मैं ि‍फर कोई न कोई काम तुम्‍हारे ि‍लए रख छोडता हूं।
तब मैं तुम्‍हारा पुजारी जाता हूं ि‍क तुम
माथे पर ि‍बना ि‍कसी तरह की ि‍शकन लाए
उस काम को करने के ि‍लए तत्‍पर हो जाती हो।

मेरा कोई काम तुम्‍हारे ि‍बना कहा संभव है
मैं हर दम कंगुरा ही बना और तुम
नींव बनकर मेरा सारा बोझ उठाती रही हो
तुम्‍हारी मेहनत का तुमको ि‍तल भर भी जस नहीं ि‍मला
ि‍फर भी तुम नाराज नहीं हुई
मेरी सफलता को हमेशा तुम अपनी सफलता मानती रही।

मेरी कल्‍पनाओं को अपने
सांचे में ढाला तुमने,
ि‍जन्‍दगी में कभी लडखडाया तो
ताकत बनकर संभाला तुमने।
तुम मेरी हर छोटी मुस्‍कान पर ि‍मटने को तत्‍पर रहती हो
तुम ममता हो जो मेरा हर दुख सहती हो।

1 comment:

gungun said...

श्री भगवती
कविता के माध्‍यम से आपकी अभिव्‍यक्ति का पता चला कि आप एक पत्रकार के साथ एक अच्‍छे कवि हद़य भी है, कविता के माध्‍यम से आपने जो भावनाएं जाहिर की है, इससे आपके सुंदर मन का पता चलता है, पहली बार ब्‍लॉग पर आकर आपकी अच्‍छी पोस्‍ट को एक एक कर देखा, आप निरंतर इस पर अपनी सक्रीयता रखें, उज्‍ज्‍वल भविष्‍य की कामनाओं के साथ
भूपेन्‍द्र सिंह राव