Thursday, August 21, 2008

ये शाम ....

ये शाम जो तुम देख रही हो

उसकी लालिमा तेरे होठों अमानत है

ये गाते हुए पंछी

सब तेरी हँसी की शरारत हैं

मैं तो कुछ भी नहीं
हवा का एक जोका हूँ

जो आता हूँ और गुजर जाता हूँ

पर मेरी इस छुवन से जो mअहका है बदन तेरा

बस यही मेरी मोहब्बत है।

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