Thursday, August 21, 2008

तुम कौन हो

महकते फूलों की तरहा तुम मेरी सांसों में उतर जाती हो

बादल की बूंदों सी मेरी आँखों में भर आती हो

तुम कौन हो

क्यों तुम कोई जवाब नहीं देती

गती अपनी सी हो

फ़िर ये बेगानापन क्यों।

कल तुम आई और मेरे

आंगन में तुलसी की तरहा

अपनी खुशबू बिखेर गई।

मैंने देखा था तुमको अल्हड मस्ती मे जूमते हुए

तुम तितली की तरहा यहाँ से वहां

डोलती रही

कई बार सोचा की मैं तुमको पकड़ कर

अपनी बागिया मे सजा लू

पर सहम गया

क्योंकि तुम हंसती और गाती

स्वतंत्र गूमती ही प्यारी लगाती हो।

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