Saturday, May 23, 2009

आमंत्रण



इन महकती हवाओं मे
तुम्हारी खुली जुल्फों का आमंत्रण
न जाने कितने अनगिनत सपनो को
करवटें लेने पर मजबूर कर देता है
मै तुम्हारी छवि को निहारता हुआ
सपनों के लिए जमीन तलाशता हूँ
और तुम खिलखिलाती हुई
अपनी अँगुलियों से चेहरे को ढक लेती हो

बहुत चाहता हूँ कि तुम्हारे होठों पर पड़ी सिलवटों से
रिस रिस कर आती नमी से
दिल के आँगन की फूलवारी को सींच लू
इस सूखी प्यासी जमीन की
कटी फटी शिराएँ मुद्दतों से तुम्हारी तलबगार है।

मुजको कहाँ जरुरत है जो
मैं तुमसे ये सुनूँ कि मैं आपको अपना सब कुछ मान बैठी हूँ
तुम्हारी आँखें क्या कम बोलती है।
जुकी हुई तुम्हारी आँखें तुम्हारे भीतर हो रही
संसद की तू तू मैं मैं
और दिल के पारित प्रस्तावों को।
सबके सामने खोल देती है।

1 comment:

Unknown said...

available Hansraj:
जय मच्छर बलवान उजागर, जय अगणित रोगों के सागर ।
नगर दूत अतुलित बलधामा, तुमको जीत न पाए रामा ।

गुप्त रूप घर तुम आ जाते, भीम रूप घर तुम खा जाते ।
मधुर मधुर खुजलाहट लाते, सबकी देह लाल कर जाते ।

वैद्य हकीम के तुम रखवाले, हर घर में हो रहने वाले ।
हो मलेरिया के तुम दाता, तुम खटमल के छोटे भ्राता ।

नाम तुम्हारे बाजे डंका, तुमको नहीं काल की शंका ।
मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारा, हर घर में हो परचम तुम्हारा ।

सभी जगह तुम आदर पाते, बिना इजाजत के घुस जाते ।
कोई जगह न ऐसी छोड़ी, जहां न रिश्तेदारी जोड़ी ।

जनता तुम्हे खूब पहचाने, नगर पालिका लोहा माने ।
डरकर तुमको यह वर दीना, जब तक जी चाहे सो जीना ।

भेदभाव तुमको नही भावें, प्रेम तुम्हारा सब कोई पावे ।
रूप कुरूप न तुमने जाना, छोटा बडा न तुमने माना ।

खावन-पढन न सोवन देते, दुख देते सब सुख हर लेते ।
भिन्न भिन्न जब राग सुनाते, ढोलक पेटी तक शर्माते ।

बाद में रोग मिले बहु पीड़ा, जगत निरन्तर मच्छर क्रीड़ा ।
जो मच्छर चालीसा गाये, सब दुखो से मुक्ति मिल जाये