Friday, June 12, 2009

खोए हम बेजान नजर आते हैं


हर तरफ तेरे ि‍नशान नजर आते हैं
ये कैसी कशीश है ि‍क हम परेशान नजर आते हैं

सैकडों बार तुमने हमको अपने सीने से लगाया
और पूछा कीसी ने तो कह ि‍दया ि‍क हम अनजान नजर आते हैं

तुम मोहब्‍बत को महसूस करने से पहले ही उकता गई
तेरे प्‍यार की खुमारी में खोए हम बेजान नजर आते हैं

वक्‍त को बहुत कसकर पकडा है हमने अपनी मुट़ठी में
दूर तलक देखो तो श्‍मशान नजर आते हैं


तेरे ि‍बना क्‍या जीना और क्‍या मर जाना है
तेरी परछाई में हमको भगवान नजर आते हैं

2 comments:

gungun said...

हाड मांस के पूतलों जैसा बदन लेकर ऐसे लगते तो नहीं हो लेकिन भावों में जो दम है, उसको देखकर लगता है कि कुछ कुछ ख्‍यालों में खोए रहते हो, ब्‍लॉग पर आपकी कविताओं के माध्‍यम से आपके मन के भावों को जानने का अवसर मिल रहा है, ऐसी अभिव्‍यक्ति होती रहनी चाहिए। अपने को निरंतर जोड़े रहो और कभी थोड़ा समय मिल सके तो हमारे ब्‍लॉग पर भी नजरें इनायत करने के लिए चले आईए।
शुभकामनाएं

भूपेन्‍द्रसिंह राव

शभुकामनाएं

gungun said...

नमस्‍कार

अच्‍छा लिखते हो जारी रखों।